Tuesday 24 October 2017

पुण्यार्क का सूर्य मंदिर


भारतवर्ष के बिहार राज्य के पटना जिले से 73 किमी पूर्व दिशा की ओर पुनारख नामक एक छोटा कस्बा है|सड़क मार्ग से यह पटना से 79 किमी दूर है|यहाँ स्थित द्वापरयुगीन प्राचीन सूर्य मंदिर की बात ही निराली है |


यूँ तो पूरे भारतवर्ष में कुल 12 प्राचीन सूर्य मंदिर है, लेकिन पुण्यार्क सूर्य मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहाँ आस्था में डूबे लोग गंगा में स्नान करके भगवान भास्कर को जल चढ़ाते हैं क्योंकि सभी 12 प्राचीन सूर्य मंदिरों में यही इकलौता सूर्य मंदिर है जो गंगा तट पर स्थित है ,इसलिए इस मंदिर की महिमा स्वतः ही अनुपम हो जाती है |


इस प्राचीन मंदिर की स्थापना को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र राजा साम्ब को अपने सौन्दर्य पर अभिमान हो गया था और अक्सर वे नारद मुनि का उपहास कर दिया करते थे |अंततः महर्षि नारद ने दुर्वासा ऋषि से मिलकर उन्हें दण्डित करने का उपाय सोचा |एक दिन जब श्रीकृष्ण अपने निजी कक्ष में विश्राम कर रहे थे तभी दुर्वासा ऋषि उनके महल में पहुँच गए और साम्ब को श्रीकृष्ण को बुलाने का आदेश दिया |आदेश पाकर साम्ब श्रीकृष्ण के निजी कक्ष में बुलाने चले गए |यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण क्रोधित हो गए और उसका सौन्दर्य नष्ट होने का शाप दे दिया,जिससे साम्ब शारीरिक व्याधि से ग्रसित हो गए |जब साम्ब को अपनी भूल का अहसास हुआ तो वे महर्षि नारद के पास शाप से मुक्ति पाने का उपाय पूछने गए |तब महर्षि नारद ने भगवान भास्कर की उपासना का उपाय बताया |तभी श्रीकृष्ण के पुत्र राजा साम्ब ने गंगा तट पर इस प्राचीन ऐतिहासिक सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था और अपनी शारीरिक व्याधि एवं शाप से मुक्ति पाने के लिए नित्य गंगा स्नान करके भगवान भास्कर की उपासना करते थे |

सदियों से यह प्राचीन पुण्यार्क सूर्य मंदिर लोगों की आस्था और उपासना का केन्द्र है और बिहार के पावन छठ पर्व पर यहाँ हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से आकर भगवान सूर्य को अर्थ्य समर्पित करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं |

Sunday 22 October 2017

माँ वैष्णो देवी

भारतवर्ष  का धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास गौरवमय रहा है |सम्पूर्ण विश्व का गुरू कहे जाने वाले भारतवर्ष में कई ग्रन्थ एवं स्थान हैं जो विश्व को प्रेरणा और जानकारी देते आये हैं,  परन्तु दुर्भाग्य की वात है कि आज हमें विश्व सम्मानित नजरों से नहीं देख रहा है | हमारे ही देश के युवा वर्ग हमारी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और पाश्चात्य संस्कृति की ओर अधिक आकृष्ट हो रहे हैं | इसका मूल कारण हमें हमारी राष्ट्रीय धरोहर की गौरव गाथा से परिचित नहीं होना है | आइये बारी-बारी से हम अपने देश की विभिन्न धार्मिक स्थलों की कथाएँ, उनके चमत्कार को जानें जो आज भी विज्ञान के लिए मायावी हैं | 
माता वैष्णो देवी 

 माता वैष्णो देवी के नाम से स्वतः ही हृदय में गीत गुँजने लगता है “ चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है” ऐसी मान्यता है कि जब तक माता का आदेश नहीं होता है तब तक कोई भक्त माता के दरबार में हाजिरी नहीं लगा सकता है, चाहे वो कितना भी बड़ा माता का भक्त हो या उसकी इच्छाशक्ति कितनी भी प्रबल क्यों न हो ? इसी तरह माता का आदेश होने पर नास्तिक पुरूष भी किसी न किसी बहाने माता के दरबार में माथा टेकने पहुँच जाता है | माता के प्रति अटूट प्रेम व विश्वास के कारण भक्त को दुर्गम मार्ग भी सुगम लगने लगता है |भक्तों की यह मान्यता है कि जो कोई भी सच्चे दिल से माता के दर्शन करने जाता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है, अंधे को रोशनी, निर्बल को बल, निःसंतान को संतान, निर्धन को धन मिलता है | इसी विश्वास के कारण भक्त कठोर परिश्रम करके पर्वतों की गोद में बसे माता वैष्णो मंदिर के दर्शन के लिए चले जाते हैं |   

  जम्मू – कश्मीर में स्थित.

पहाडों वाली माता का यह मंदिर सबसे सुन्दर और मनोहारी राज्य जम्मू और कश्मीर की हसीन वादियों में स्थित है | यह कटरा से 14 किमी दूर लगभग 5200 फूट की ऊँचाई पर स्थित है |उत्तर भारत में यह प्रसिद्ध मंदिर सर्वाधिक पूजनीय और पवित्र स्थलों में से एक है |हर साल लाखों तीर्थ यात्री मंदिर के दर्शन हेतू यहाँ आते हैं |माता की भव्य गुफा त्रिकुट पर्वत पर है |इस गुफा में प्राकृतिक रूप से तीन पिण्डी बनी हुई है | यह आदिशक्ति के तीन रूप माने जाते हैं | पहली बाँयी ओर की पिण्डी माँ सरस्वती की है जो ग्यान की देवी हैं, दूसरी पिण्डी मध्य में माँ महालक्ष्मी की है जो धन-वैभव की देवी है और तीसरी दाँयी ओर की पिण्डी महाकाली की है जो शक्ति की देवी है | भक्तों को इन्हीं तीन पिण्डियों के दर्शन होते हैं, लेकिन माता वैष्णो देवी की यहाँ कोई पिण्डी नहीं है, फिर भी यह स्थान वैष्णो देवी तीर्थ स्थल कहलाता है|इसका कारण यह है कि माता वैष्णो देवी यहाँ अदृश्य रूप में मौजूद हैं और पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम द्वारा लंका से लौटते हुए दिए गये वचन के पूरा होने का इन्तजार कर रही है |माता वैष्णो देवी से संबन्धित कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित है, लेकिन मुख्य रूप से दो कथाएँ अधिक प्रचलित हैं |


“माता वैष्णो देवी की पहली कथा "

एक मान्यता के अनुसार माता वैष्णो देवी अपने भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दर्शन देकर अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया |वर्तमान कटरा कस्बे से 2 किमी दूर हंसाली गाँव में श्रीधर नामक पंडित माँ वैष्णो का परम भक्त थे ,परन्तु निःसंतान होने के कारण वह सदा दुखी एवं कुंठित रहते थे |एक बार नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया |माता वैष्णो भी कन्या रुप धारण कर उनके बीच बैठ गई |पूजन समाप्त होने पर सभी कन्याएँ अपने घर लौट गई, परन्तु माँ वैष्णो वहीं रही और श्रीधर से बोली –“सबको अपने घर भण्डारे का निमंत्रण दे आओ |” श्रीधर ने बात मानकर आस-पास के गाँव में भण्डारे का संदेश पहुँचा दिया |लौटते यमय गुरू गोरखनाथ और उनके शिष्यों, जिनमें बाबा भैरवनाथ भी शामिल था, को भी भण्डारे का निमंत्रण दे दिया |निमंत्रण पाकर सभी आश्चर्यचकित थे कि कौनसी कन्या इतने लोगों को भोजन करवाना चाहती है |समयानुसार गाँववासी श्रीधर के घर एकत्रित होने लगे और तब कन्यारुपी माँ वैष्णो एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया |परोसते-परोसते जब भैरवनाथ के पास पहुँची तब उसने कहा कि –“मैं तो खीर पुड़ी  की जगह माँस भक्षण और मदिरा पान करूँगा |” तब कन्यारुपी माता ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के घर का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता है, परन्तु भैरवनाथ जान-बूझकर अपनी जिद पर अड़ा रहा |भैरवनाथ क्रोधित होकर कन्या को पकडना चाहा, पर माँ वैष्णो ने वायु रूप धारण कर पर्वत की ओर उड़ चली |भैरवनाथ भी उनके पीछे गया |कहा जाता है कि जब माँ पहाड़ी की एक गुफा के पास पहुँची तो उन्होंने हनुमानजो को बुलाया और उनसे कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तप करूंगी, तब तक आप भैरवनाथ के साथ खेलें|आज्ञानुसार इस गुफा के बाहर माता कीै रक्षा के लिए हनुमानजी भैरवनाथ के साथ नौ माह तक खेले |आज के समय इस पवित्र गुफा को ‘अर्धकुमारी ‘ या ‘आदिकुमारी ‘ या ‘गर्भजून’ कहा जाता है |इसी दौरान हनुमानजी को प्यास लगी तब माता ने उनके आग्रह पर धनुष से बाण चलाकर पहाड़ से जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए |आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा ‘के नाम से जानी जाती है |इस जलधारा के जल को अमृत तुल्य माना जाता है |जब भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं, इस जलधारा में अवश्य स्नान करते हैंएक मान्यता के अनुसार माता वैष्णो देवी अपने भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दर्शन देकर अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया |वर्तमान कटरा कस्बे से 2 किमी दूर हंसाली गाँव में श्रीधर नामक पंडित माँ वैष्णो का परम भक्त थे ,परन्तु निःसंतान होने के कारण वह सदा दुखी एवं कुंठित रहते थे |एक बार नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया |माता वैष्णो भी कन्या रुप धारण कर उनके बीच बैठ गई |पूजन समाप्त होने पर सभी कन्याएँ अपने घर लौट गई, परन्तु माँ वैष्णो वहीं रही और श्रीधर से बोली –“सबको अपने घर भण्डारे का निमंत्रण दे आओ |” श्रीधर ने बात मानकर आस-पास के गाँव में भण्डारे का संदेश पहुँचा दिया |लौटते यमय गुरू गोरखनाथ और उनके शिष्यों, जिनमें बाबा भैरवनाथ भी शामिल था, को भी भण्डारे का निमंत्रण दे दिया |निमंत्रण पाकर सभी आश्चर्यचकित थे कि कौनसी कन्या इतने लोगों को भोजन करवाना चाहती है |समयानुसार गाँववासी श्रीधर के घर एकत्रित होने लगे और तब कन्यारुपी माँ वैष्णो एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया |परोसते-परोसते जब भैरवनाथ के पास पहुँची तब उसने कहा कि –“मैं तो खीर पुड़ी  की जगह माँस भक्षण और मदिरा पान करूँगा |” तब कन्यारुपी माता ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के घर का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता है, परन्तु भैरवनाथ जान-बूझकर अपनी जिद पर अड़ा रहा |भैरवनाथ क्रोधित होकर कन्या को पकडना चाहा, पर माँ वैष्णो ने वायु रूप धारण कर पर्वत की ओर उड़ चली |भैरवनाथ भी उनके पीछे गया |कहा जाता है कि जब माँ पहाड़ी की एक गुफा के पास पहुँची तो उन्होंने हनुमानजो को बुलाया और उनसे कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तप करूंगी, तब तक आप भैरवनाथ के साथ खेलें|आज्ञानुसार इस गुफा के बाहर माता कीै रक्षा के लिए हनुमानजी भैरवनाथ के साथ नौ माह तक खेले |आज के समय इस पवित्र गुफा को ‘अर्धकुमारी ‘ या ‘आदिकुमारी ‘ या ‘गर्भजून’ कहा जाता है |इसी दौरान हनुमानजी को प्यास लगी तब माता ने उनके आग्रह पर धनुष से बाण चलाकर पहाड़ से जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए |आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा ‘के नाम से जानी जाती है |इस जलधारा के जल को अमृत तुल्य माना जाता है |जब भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं, इस जलधारा में अवश्य स्नान करते हैं | 

गर्भजून के पहले माता की चरण पादुका भी है |यह वह स्थान है जहाँ माता ने भागते हुए मुड़कर भैरवनाथ को चेताया था और वापस चले जाने को कहा था , परन्तु वह नहीं माना |माता गुफा के अन्दर चली गई |तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरव से नौ माह तक युद्ध किया |भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी |जब हनुमानजी निढाल होने लगे तो माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार किया |यह स्थान ‘भवन’ के नाम से जाना जाता है |भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकुट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा |उस स्थान को “भैरवनाथ के मंदिर “के नाम से जाना जाता है |इसी बीच वैष्णो देवी ने तीन पिण्ड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गई |गर्भजून के पहले माता की चरण पादुका भी है |यह वह स्थान है जहाँ माता ने भागते हुए मुड़कर भैरवनाथ को चेताया था और वापस चले जाने को कहा था , परन्तु वह नहीं माना |माता गुफा के अन्दर चली गई |तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरव से नौ माह तक युद्ध किया |भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी |जब हनुमानजी निढाल होने लगे तो माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार किया |यह स्थान ‘भवन’ के नाम से जाना जाता है |भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकुट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा |उस स्थान को “भैरवनाथ के मंदिर “के नाम से जाना जाता है |इसी बीच वैष्णो देवी ने तीन पिण्ड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गई |

उधर पंडित श्रीधर अधीर हो गये|उन्हें सपने में त्रिकुटा पर्वत दिखाई दिया और साथ ही माता की तीन पिण्डियाँ भी, जिनकी खोज करते हुए वे पहाड़ी पर जा पहुँचे|पिंडिया मिलने पर उन्होंने सारी जिन्दगी विधिपूर्वक उन पिण्डों की पूजा की |उनसे प्रसन्न होकर देवी उनके सामने प्रकट हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया |तब से श्रीधर और उनके वंशज ही माँ वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं |
माता वैष्णवी ने भैरवनाथ को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त करके मोक्ष प्रदान किया |भैरवनाथ का वध हो जाने पर उसे अपनी मूर्खता का अहसास हुआ और उसने माता से क्षमा माँगी |माता ने उसे क्षमा करते हुए वरदान दिया कि “मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा|”उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद 8 किमी खड़ी चढ़ाई चढ़कर भैरवनाथ के दर्शन करने को जाते हैं |

तीन पिण्डों का मनुष्य के जीवन से गहरा नाता है |प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन सफल बनाने के लिए विद्या, धन और बल तीनों ही आवश्यक होते हैं, इसीलिए भक्त इन्हें हासिल करने के लिए कठोर परिश्रम करके पहाड़ी की यात्रा पूर्ण करता हुआ माता के दरबार में हाजिरी लगाता है |





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