Monday 11 June 2018

जल : सतर्क होने की अंतिम घड़ी

जल : सतर्क होने की अंतिम घड़ी 


जल, जीवन की मूलभूत आवश्यकता है, जो पहले आसानी से उपलब्ध था पर अब खरीदना पड़ा रहा है | 
दादाजी ने जल को नदियों में देखा था, पिताजी ने कुएँ में देखा, हमारे सामने यह नल और बोतलों में आ गया | 



कल्पना करिये आने वाली पीढ़ी को शीशी में ड्रॉप के रुप में उपलब्ध होगी | सतर्क  होने  की अंतिम घड़ी आ गई है | 
यदि अब भी नहीं संभले तो जल की बूंद - बूंद के लिए तरस जाएंगे |



 प्रदूषित नदियाँ --

 
                 
   तेज गति से बढ़ रही जनसंख्या, शहरीकरण , औद्योगीकरण ने जलस्त्रोत को तीव्र गति से दूषित किया है, जिससे इन स्त्रोतों का जल उपयोग लायक नहीं बचा |
पिछले पाँच सालों में प्रदूषित नदियों की संख्या 121 से बढ़कर 275 हो गई है |
अधिकांश नदियाँ नाले में बदल चुकी है |
भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ के लोग पानी के लिए प्रतिदिन संघर्ष कर रहे हैं |

हमारे देश की लगभग 7 करोड़ आबादी गंदे या दूषित  पानी पर गुजारा कर रही है |
जिस जल से हम हाथ धोना पसंद नहीं करेंगें वैसे जल को वे पीने को मजबूर हैं |


शुद्ध जल की कमी --

           पृथ्वी पर 71% जल है जिसमें मात्र 2.5% ही शुद्ध है |इसमें भी उपयोग करने लायक केवल 0.03% ही जल है | 



शुद्ध जल का अधिकांश भाग बर्फ के रुप में ग्लेशियर में जमा है और लगभग 30% भूमिगत जल के रुप में है |
संयुक्त राष्ट्र के एक  रिपोर्ट के अनुसार महज 7 साल बाद सन् 2025 तक तक विश्व की 180 करोड़ आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहेगी जहाँ पानी नहीं के बराबर होगा |



 डे - जीरो ---

     डे- जीरो का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जब शहर के सारे नलों में पानी आना बंद हो जाएगा |


दक्षिण अफ्रीका का शहर केपटाउन सूखे की मार झेल रहा है क्योंकि वहाँ डे - जीरो की स्थिति आ चुकी है |


वहाँ के लोगों को महज दो बाल्टी जल दिया जाता है, जिसमें सभी काम करने पड़ते हैं |
हाल ही प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर के 200 से अधिक शहर तेजी से जल संकट की ओर बढ़ रहे हैं |
इसमें से 10 शहर तो डे - जीरो के कगार पर हैं |बंगलुरू शहर भी इस लिस्ट में शामिल है | 


आपने सुना होगा कि तीसरा विश्व युद्ध जल के लिए होगा | वर्तमान हालात को देखते हुए लगता है जल्द ही यह हकीकत में तबदील होने वाला है |
एक विद्वान के अनुसार 2030 तक भारत में पीने के लिए आवश्यक जल की मात्रा का आधा ही उपलब्ध होगा |
तब अगर संभलना भी चाहें तो बहुत देर हो चुकी होगी क्योंकि उस वक्त पेड़ लगाना भी चाहें तो पेड़ को सींचने के लिए जल नहीं होगा |





आपका -------- प्रमोद कुमार 


अन्य पोस्ट व वेबसाइट -


1. http://collegestar.in/?p=17566
2.  http://collegestar.in/?p=10160
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Tuesday 30 January 2018

सबसे रहस्यमयी मंदिर

                       हमारा भारत देश किस्से -कहानियों का देश है, जो अपने अन्दर न जाने कितने रहस्यमयी कहानियों और बातों को छिपाये हुए है | हमारे देश में कई ऐसे रहस्यमयी ओर प्राचीन मंदिर है जो कई सौ सालों से लोगों और वैज्ञानिकों के लिए रहस्य का कारण बने हुए हैं | इन रहस्यमयी मंदिरों ने विश्व के कई वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है |
             
                       
                         
                            आज हम एक ऐसी ही रहस्यमयी मंदिर के बारे में बात करेंगे | हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी का प्राचीन मंदिर अत्यन्त रहस्यमयी है जिसका रहस्य आज तक पहेली बनकर रह गया है | यह मंदिर रहस्यमयी और चमत्कारिक मंदिरों की सूची में सबसे ऊपर है |पुराणों के अनुसार 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ यह भी है | कहा जाता है कि इस स्थान पर देवी सती की जीभ गिरी थी |
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इस मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मंदिर के पर्वत की चट्टान पर नौ अलग -अलग जगहों पर बिना किसी ईंधन के ज्योति निरन्तर जलती रहती है | मंदिर में मौजूद नौ ज्योतियों में एक प्रमुख ज्वाला चाँदी के आले में स्थित है, जिसे महाकाली कहते हैं | हिमालय की पहाड़ियों से घिरा यह स्थान चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है | कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण सम्राट भूमिचन्द्र ने एक ग्वाले के कहने पर करवाया था |इस मंदिर में शुरू में जिन भोजक ब्राह्मणों ने पुजा अर्चना की थी आज भी उनके वंशज ही यहाँ पर पुजा अर्चना कर रहे हैं |


http://collegestar.in/?p=5463
 
                       
                              इस मंदिर के बारे में एक और कहानी बताई जाती है कि एक बार मुगल बादशाह अकबर ने भी ज्वाला देवी की अग्नि को बुझाने का प्रयास किया था ,लेकिन लाख प्रयास करने पर भी ज्योति निरन्तर जलती रही |इतने निरन्तर प्रयास करने के बाद भी जब सम्राट अकबर अग्नि बुझाने में नाकाम रहे तो वो भी माँ ज्वाला के सामने सिर झुका लिया और श्रद्धापूर्वक सवा मन का एक सोने का छत्र मंदिर में दान किया |http://collegestar.in/?p=5037

                    
  

                    मंदिर में जल रही यह ज्योति सदियों से निरन्तर जलती आ रही है | इस मंदिर में दूसरा हैरान करने वाला रहस्य यह है कि इस मंदिर में एक गोरख डिब्बी है जिसमें पानी खौलता रहता है, परन्तु जब उस पानी को छुआ जाता है तो वह पानी एकदम ठंडा लगता है | वहाँ आने वाले लोग अपने हाथ इस पानी में डालकर देवी माँ का आशीर्वाद लेते हैं |वहाँ पर कई वैज्ञानिकों ने अनेकों बार शोध किये लेकिन कोई भी अभी तक यह नहीं पता कर पाया कि इसके पीछे क्या कारण है |

Sunday 28 January 2018

फर्श पर सोने मात्र से महिलाएँ गर्भवती

नमस्कार दोस्तों, 

                एक एेसा मंदिर जहाँ फर्श पर सोने मात्र से महिलाएँ गर्भवती यानी प्रेग्नेन्ट हो जाती हैं, जी हाँ दोस्तो आपने सही पढ़ा | विज्ञान आज भी हैरान -परेशान है और इस चमत्कार की गुत्थी को सुलझा नहीं पाया है |

                    वेलकम दोस्तो, आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के एक ऐसे मंदिर के बारे में जहाँ फर्श पर सोने मात्र से निःसंतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है और विज्ञान भी हैरान है|यकीनन दोस्तो आपको भी इस चमत्कार पर यकीन नहीं होगा |       


                     भारत विविधताओं का देश है |यहाँ कई ऐसे शक्तिशाली एवं चमत्कारिक मंदिर है, जिनके बारे में जानकर एक बार तो विश्वास नहीं होता है परन्तु दोस्तो हम आये दिन कोई न कोई चमत्कार देखते या सुनते रहते हैं, जो विज्ञान की हदों को पार कर आस्था के चरम का प्रतीक होती है |इसे आप अंधविश्वास या विश्वास भी कह सकते हैं |

                            दोस्तो विज्ञान को हैरान करने वाली वह चमत्कारिक मंदिर हिमाचल में स्थित सिमसा माता का मंदिर है |इस मंदिर की मान्यता है कि इस मंदिर के फर्श पर सोने से स्त्रियाँ गर्भवती हो जाती हैं |आज के युग में यह सुनकर आपको हँसी आ रही होगी, परन्तु हम कोई मजाक नहीं कर रहे हैं, ये हकीकत है और इसके कई जीवित प्रमाण भी हैं |

                            दोस्तो, यूँ तो निःसन्तान दम्पति संतान प्राप्ति के लिए न जाने क्या - क्या करते हैं, परन्तु हिमाचल के सिमस गाँव में सिमसा माता का ऐसा मंदिर है जहाँ मात्र फर्श पर सोने से ही संतान की प्राप्ति होती है| इसे संतान दात्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है |यहाँ दूर -दूर से महिलाएँ मंदिर के फर्श पर सोने के लिए आती हैं |नवरात्रि में यहाँ शैलेन्द्रा उत्सव मनाया जाता है, जिसका अर्थ है - सपने आना |


                      नवरात्रि में आस -पास के राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, चण्डीगढ़ से हजारों निःसन्तान महिलाएँ यहाँ आती हैं और दिन रात मंदिर के फर्श पर सोती है| ऐसी मान्यता है कि जो महिला माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा भाव लेकर यहाँ आती है ,उन्हें माता सिमसा सपने में मानव रूप में या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान का आशीर्वाद प्रदान करती है |लोगों के कथनानुसार माता सिमसा सपने में महिलाओं को फल देती है और महिलाएँ सपने में उस फल को ले लेती है |सपने में माता द्वारा फल दिया जाना इस बात का प्रतीक होता है कि माता ने उस महिला को संतान का आशीर्वाद दे दिया |इतना ही नहीं फल से यह भी अनुमान लगाया जाता है कि होने वाला संतान पुत्र होगा या पुत्री | जैसे किसी महिला को आम, तरबूज 🍉 या अमरूद सपने में मिलता है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होगी |इसी प्रकार यदि किसी महिला को लौकी, भिण्डी इत्यादि मिले तो यह समझा जाता है कि होने वाली संतान पुत्री होगी | यदि किसी महिला को धातु, पत्थर या काठ की बनी कोई वस्तु मिलती है तो यह माना जाता है कि उसे संतान सुख नहीं मिलेगा | अगर ऐसी महिलाएँ यह जानने के बाद भी वहाँ से नहीं जाती है तो उनके शरीर में व्याधियाँ उत्पन्न होने लगती है, जिससे मजबूरन उस महिला को मंदिर से जाना पड़ता है |


                             दोस्तो इस मंदिर के पास एक चमत्कारिक पत्थर भी है  जिसे आप दोनों हाथों से चाहे कितना भी बल लगा लो यह हिलेगा नहीं, परन्तु आप अपने एक हाथ की छोटी ऊँगली से इसे आसानी से हिला दोगे |

                           

Tuesday 24 October 2017

पुण्यार्क का सूर्य मंदिर


भारतवर्ष के बिहार राज्य के पटना जिले से 73 किमी पूर्व दिशा की ओर पुनारख नामक एक छोटा कस्बा है|सड़क मार्ग से यह पटना से 79 किमी दूर है|यहाँ स्थित द्वापरयुगीन प्राचीन सूर्य मंदिर की बात ही निराली है |


यूँ तो पूरे भारतवर्ष में कुल 12 प्राचीन सूर्य मंदिर है, लेकिन पुण्यार्क सूर्य मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहाँ आस्था में डूबे लोग गंगा में स्नान करके भगवान भास्कर को जल चढ़ाते हैं क्योंकि सभी 12 प्राचीन सूर्य मंदिरों में यही इकलौता सूर्य मंदिर है जो गंगा तट पर स्थित है ,इसलिए इस मंदिर की महिमा स्वतः ही अनुपम हो जाती है |


इस प्राचीन मंदिर की स्थापना को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र राजा साम्ब को अपने सौन्दर्य पर अभिमान हो गया था और अक्सर वे नारद मुनि का उपहास कर दिया करते थे |अंततः महर्षि नारद ने दुर्वासा ऋषि से मिलकर उन्हें दण्डित करने का उपाय सोचा |एक दिन जब श्रीकृष्ण अपने निजी कक्ष में विश्राम कर रहे थे तभी दुर्वासा ऋषि उनके महल में पहुँच गए और साम्ब को श्रीकृष्ण को बुलाने का आदेश दिया |आदेश पाकर साम्ब श्रीकृष्ण के निजी कक्ष में बुलाने चले गए |यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण क्रोधित हो गए और उसका सौन्दर्य नष्ट होने का शाप दे दिया,जिससे साम्ब शारीरिक व्याधि से ग्रसित हो गए |जब साम्ब को अपनी भूल का अहसास हुआ तो वे महर्षि नारद के पास शाप से मुक्ति पाने का उपाय पूछने गए |तब महर्षि नारद ने भगवान भास्कर की उपासना का उपाय बताया |तभी श्रीकृष्ण के पुत्र राजा साम्ब ने गंगा तट पर इस प्राचीन ऐतिहासिक सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था और अपनी शारीरिक व्याधि एवं शाप से मुक्ति पाने के लिए नित्य गंगा स्नान करके भगवान भास्कर की उपासना करते थे |

सदियों से यह प्राचीन पुण्यार्क सूर्य मंदिर लोगों की आस्था और उपासना का केन्द्र है और बिहार के पावन छठ पर्व पर यहाँ हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से आकर भगवान सूर्य को अर्थ्य समर्पित करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं |

Sunday 22 October 2017

माँ वैष्णो देवी

भारतवर्ष  का धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास गौरवमय रहा है |सम्पूर्ण विश्व का गुरू कहे जाने वाले भारतवर्ष में कई ग्रन्थ एवं स्थान हैं जो विश्व को प्रेरणा और जानकारी देते आये हैं,  परन्तु दुर्भाग्य की वात है कि आज हमें विश्व सम्मानित नजरों से नहीं देख रहा है | हमारे ही देश के युवा वर्ग हमारी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और पाश्चात्य संस्कृति की ओर अधिक आकृष्ट हो रहे हैं | इसका मूल कारण हमें हमारी राष्ट्रीय धरोहर की गौरव गाथा से परिचित नहीं होना है | आइये बारी-बारी से हम अपने देश की विभिन्न धार्मिक स्थलों की कथाएँ, उनके चमत्कार को जानें जो आज भी विज्ञान के लिए मायावी हैं | 
माता वैष्णो देवी 

 माता वैष्णो देवी के नाम से स्वतः ही हृदय में गीत गुँजने लगता है “ चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है” ऐसी मान्यता है कि जब तक माता का आदेश नहीं होता है तब तक कोई भक्त माता के दरबार में हाजिरी नहीं लगा सकता है, चाहे वो कितना भी बड़ा माता का भक्त हो या उसकी इच्छाशक्ति कितनी भी प्रबल क्यों न हो ? इसी तरह माता का आदेश होने पर नास्तिक पुरूष भी किसी न किसी बहाने माता के दरबार में माथा टेकने पहुँच जाता है | माता के प्रति अटूट प्रेम व विश्वास के कारण भक्त को दुर्गम मार्ग भी सुगम लगने लगता है |भक्तों की यह मान्यता है कि जो कोई भी सच्चे दिल से माता के दर्शन करने जाता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है, अंधे को रोशनी, निर्बल को बल, निःसंतान को संतान, निर्धन को धन मिलता है | इसी विश्वास के कारण भक्त कठोर परिश्रम करके पर्वतों की गोद में बसे माता वैष्णो मंदिर के दर्शन के लिए चले जाते हैं |   

  जम्मू – कश्मीर में स्थित.

पहाडों वाली माता का यह मंदिर सबसे सुन्दर और मनोहारी राज्य जम्मू और कश्मीर की हसीन वादियों में स्थित है | यह कटरा से 14 किमी दूर लगभग 5200 फूट की ऊँचाई पर स्थित है |उत्तर भारत में यह प्रसिद्ध मंदिर सर्वाधिक पूजनीय और पवित्र स्थलों में से एक है |हर साल लाखों तीर्थ यात्री मंदिर के दर्शन हेतू यहाँ आते हैं |माता की भव्य गुफा त्रिकुट पर्वत पर है |इस गुफा में प्राकृतिक रूप से तीन पिण्डी बनी हुई है | यह आदिशक्ति के तीन रूप माने जाते हैं | पहली बाँयी ओर की पिण्डी माँ सरस्वती की है जो ग्यान की देवी हैं, दूसरी पिण्डी मध्य में माँ महालक्ष्मी की है जो धन-वैभव की देवी है और तीसरी दाँयी ओर की पिण्डी महाकाली की है जो शक्ति की देवी है | भक्तों को इन्हीं तीन पिण्डियों के दर्शन होते हैं, लेकिन माता वैष्णो देवी की यहाँ कोई पिण्डी नहीं है, फिर भी यह स्थान वैष्णो देवी तीर्थ स्थल कहलाता है|इसका कारण यह है कि माता वैष्णो देवी यहाँ अदृश्य रूप में मौजूद हैं और पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम द्वारा लंका से लौटते हुए दिए गये वचन के पूरा होने का इन्तजार कर रही है |माता वैष्णो देवी से संबन्धित कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित है, लेकिन मुख्य रूप से दो कथाएँ अधिक प्रचलित हैं |


“माता वैष्णो देवी की पहली कथा "

एक मान्यता के अनुसार माता वैष्णो देवी अपने भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दर्शन देकर अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया |वर्तमान कटरा कस्बे से 2 किमी दूर हंसाली गाँव में श्रीधर नामक पंडित माँ वैष्णो का परम भक्त थे ,परन्तु निःसंतान होने के कारण वह सदा दुखी एवं कुंठित रहते थे |एक बार नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया |माता वैष्णो भी कन्या रुप धारण कर उनके बीच बैठ गई |पूजन समाप्त होने पर सभी कन्याएँ अपने घर लौट गई, परन्तु माँ वैष्णो वहीं रही और श्रीधर से बोली –“सबको अपने घर भण्डारे का निमंत्रण दे आओ |” श्रीधर ने बात मानकर आस-पास के गाँव में भण्डारे का संदेश पहुँचा दिया |लौटते यमय गुरू गोरखनाथ और उनके शिष्यों, जिनमें बाबा भैरवनाथ भी शामिल था, को भी भण्डारे का निमंत्रण दे दिया |निमंत्रण पाकर सभी आश्चर्यचकित थे कि कौनसी कन्या इतने लोगों को भोजन करवाना चाहती है |समयानुसार गाँववासी श्रीधर के घर एकत्रित होने लगे और तब कन्यारुपी माँ वैष्णो एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया |परोसते-परोसते जब भैरवनाथ के पास पहुँची तब उसने कहा कि –“मैं तो खीर पुड़ी  की जगह माँस भक्षण और मदिरा पान करूँगा |” तब कन्यारुपी माता ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के घर का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता है, परन्तु भैरवनाथ जान-बूझकर अपनी जिद पर अड़ा रहा |भैरवनाथ क्रोधित होकर कन्या को पकडना चाहा, पर माँ वैष्णो ने वायु रूप धारण कर पर्वत की ओर उड़ चली |भैरवनाथ भी उनके पीछे गया |कहा जाता है कि जब माँ पहाड़ी की एक गुफा के पास पहुँची तो उन्होंने हनुमानजो को बुलाया और उनसे कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तप करूंगी, तब तक आप भैरवनाथ के साथ खेलें|आज्ञानुसार इस गुफा के बाहर माता कीै रक्षा के लिए हनुमानजी भैरवनाथ के साथ नौ माह तक खेले |आज के समय इस पवित्र गुफा को ‘अर्धकुमारी ‘ या ‘आदिकुमारी ‘ या ‘गर्भजून’ कहा जाता है |इसी दौरान हनुमानजी को प्यास लगी तब माता ने उनके आग्रह पर धनुष से बाण चलाकर पहाड़ से जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए |आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा ‘के नाम से जानी जाती है |इस जलधारा के जल को अमृत तुल्य माना जाता है |जब भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं, इस जलधारा में अवश्य स्नान करते हैंएक मान्यता के अनुसार माता वैष्णो देवी अपने भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दर्शन देकर अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया |वर्तमान कटरा कस्बे से 2 किमी दूर हंसाली गाँव में श्रीधर नामक पंडित माँ वैष्णो का परम भक्त थे ,परन्तु निःसंतान होने के कारण वह सदा दुखी एवं कुंठित रहते थे |एक बार नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया |माता वैष्णो भी कन्या रुप धारण कर उनके बीच बैठ गई |पूजन समाप्त होने पर सभी कन्याएँ अपने घर लौट गई, परन्तु माँ वैष्णो वहीं रही और श्रीधर से बोली –“सबको अपने घर भण्डारे का निमंत्रण दे आओ |” श्रीधर ने बात मानकर आस-पास के गाँव में भण्डारे का संदेश पहुँचा दिया |लौटते यमय गुरू गोरखनाथ और उनके शिष्यों, जिनमें बाबा भैरवनाथ भी शामिल था, को भी भण्डारे का निमंत्रण दे दिया |निमंत्रण पाकर सभी आश्चर्यचकित थे कि कौनसी कन्या इतने लोगों को भोजन करवाना चाहती है |समयानुसार गाँववासी श्रीधर के घर एकत्रित होने लगे और तब कन्यारुपी माँ वैष्णो एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया |परोसते-परोसते जब भैरवनाथ के पास पहुँची तब उसने कहा कि –“मैं तो खीर पुड़ी  की जगह माँस भक्षण और मदिरा पान करूँगा |” तब कन्यारुपी माता ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के घर का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता है, परन्तु भैरवनाथ जान-बूझकर अपनी जिद पर अड़ा रहा |भैरवनाथ क्रोधित होकर कन्या को पकडना चाहा, पर माँ वैष्णो ने वायु रूप धारण कर पर्वत की ओर उड़ चली |भैरवनाथ भी उनके पीछे गया |कहा जाता है कि जब माँ पहाड़ी की एक गुफा के पास पहुँची तो उन्होंने हनुमानजो को बुलाया और उनसे कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तप करूंगी, तब तक आप भैरवनाथ के साथ खेलें|आज्ञानुसार इस गुफा के बाहर माता कीै रक्षा के लिए हनुमानजी भैरवनाथ के साथ नौ माह तक खेले |आज के समय इस पवित्र गुफा को ‘अर्धकुमारी ‘ या ‘आदिकुमारी ‘ या ‘गर्भजून’ कहा जाता है |इसी दौरान हनुमानजी को प्यास लगी तब माता ने उनके आग्रह पर धनुष से बाण चलाकर पहाड़ से जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए |आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा ‘के नाम से जानी जाती है |इस जलधारा के जल को अमृत तुल्य माना जाता है |जब भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं, इस जलधारा में अवश्य स्नान करते हैं | 

गर्भजून के पहले माता की चरण पादुका भी है |यह वह स्थान है जहाँ माता ने भागते हुए मुड़कर भैरवनाथ को चेताया था और वापस चले जाने को कहा था , परन्तु वह नहीं माना |माता गुफा के अन्दर चली गई |तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरव से नौ माह तक युद्ध किया |भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी |जब हनुमानजी निढाल होने लगे तो माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार किया |यह स्थान ‘भवन’ के नाम से जाना जाता है |भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकुट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा |उस स्थान को “भैरवनाथ के मंदिर “के नाम से जाना जाता है |इसी बीच वैष्णो देवी ने तीन पिण्ड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गई |गर्भजून के पहले माता की चरण पादुका भी है |यह वह स्थान है जहाँ माता ने भागते हुए मुड़कर भैरवनाथ को चेताया था और वापस चले जाने को कहा था , परन्तु वह नहीं माना |माता गुफा के अन्दर चली गई |तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरव से नौ माह तक युद्ध किया |भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी |जब हनुमानजी निढाल होने लगे तो माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार किया |यह स्थान ‘भवन’ के नाम से जाना जाता है |भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकुट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा |उस स्थान को “भैरवनाथ के मंदिर “के नाम से जाना जाता है |इसी बीच वैष्णो देवी ने तीन पिण्ड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गई |

उधर पंडित श्रीधर अधीर हो गये|उन्हें सपने में त्रिकुटा पर्वत दिखाई दिया और साथ ही माता की तीन पिण्डियाँ भी, जिनकी खोज करते हुए वे पहाड़ी पर जा पहुँचे|पिंडिया मिलने पर उन्होंने सारी जिन्दगी विधिपूर्वक उन पिण्डों की पूजा की |उनसे प्रसन्न होकर देवी उनके सामने प्रकट हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया |तब से श्रीधर और उनके वंशज ही माँ वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं |
माता वैष्णवी ने भैरवनाथ को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त करके मोक्ष प्रदान किया |भैरवनाथ का वध हो जाने पर उसे अपनी मूर्खता का अहसास हुआ और उसने माता से क्षमा माँगी |माता ने उसे क्षमा करते हुए वरदान दिया कि “मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा|”उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद 8 किमी खड़ी चढ़ाई चढ़कर भैरवनाथ के दर्शन करने को जाते हैं |

तीन पिण्डों का मनुष्य के जीवन से गहरा नाता है |प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन सफल बनाने के लिए विद्या, धन और बल तीनों ही आवश्यक होते हैं, इसीलिए भक्त इन्हें हासिल करने के लिए कठोर परिश्रम करके पहाड़ी की यात्रा पूर्ण करता हुआ माता के दरबार में हाजिरी लगाता है |





जल : सतर्क होने की अंतिम घड़ी

जल : सतर्क होने की अंतिम घड़ी  जल, जीवन की मूलभूत आवश्यकता है, जो पहले आसानी से उपलब्ध था पर अब खरीदना पड़ा रहा है |  दादाजी ने ज...